हज़रात ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती )रह( केपास एक बूढ़ा शख्स बड़ी दूर से पैदल चल के खाना लेकर आयावह बज़िद था के आप ये खाना खाएं उसे नहीं मालूम था के आप ने नफ्ली रोज़ा रखा हुआ है आप ने उसका दिल रखने के लिए रोज़ा तोड़ दिया जब आप ने खाना खा लिया और वह बूढ़ा शख्स चला गया तो आपके मुरीद ने आपको कहा केहज़रत आप का तो रोज़ा था ,आपने फ़रमाया के रोज़ा तोड़ने का कफ़्फ़ारा है मगर दिल तोड़ने का कोई कफ़्फ़ारा नहीं हैसुब्हान अल्लाहये हैं अल्लाह के फ़क़ीर बन्दे जिन को नफ्ली रोज़े से बढ़ कर इंसानो के दिलों का फिक्र है कहीं उनकी वजह से किसी का दिल न दुखे और एक हम लोग हैं जो हर मोड़ पे लोगों का दिल दुखा कर खुश होते हैं.....!
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