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Sunday 12 July 2015

sahabi larka

एक यहूदी आशिक़-ए-रसूल सल अल्लाहू अलैहीवआलेही वसल्लम के इश्क़ और ईमान लाने कि बहोतप्यारी हदीस-ए-मुबारका,,,,एक यहूदी ने अपने बेटे को कहा: जाओ सौदा ले आओ तो वोगया, लड़का रास्ते से गुज़र रहा था कि उसकी नज़र हुज़ूर सलअल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम पर पड़ी औरहुज़ूर सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम
की नज़र उस लड़के पर पड़ी, वो वहींबैठ गया और वहीं बैठा रह गया और देर हो गई।
वो यहूदी कभी अंदर जाता कभी बाहरआता कि लड़का कहाँ रह गया, आया नहीं अभी
तक, सूरज ग़ुरूब हो गया मग़रिब की नमाज़ हो गई, शाम को घरगया बाप ने पूछा: अरे नादान इतनी ताख़ीर कियुँ? बापबहुत ग़ुस्से में कि बड़ा नादान और पागल है मैंने कहा था जल्दीआना तुम इतनी देर कर के आए हो और तुम्हें सौदा लेने भेजाथा तुम ख़ाली हाथ वापिस आ गए हो, सौदा कहाँ है? सौदा कहाँहै?बेटा बोला: सौदा तो मैं ख़रीद चुका हूँ।
बाप: क्या पागल आदमी हो तुम? मैंने तुझे सौदा लेने भेजा था,सौदा तुम्हारे पास है नहीं, और कहता है ख़रीदचुका हूँ।बेटा कहता है: बाबा! यक़ीन करें, सौदा ख़रीद आया
हूँ।बाप बोला: तो दिखा कहाँ है?बेटे ने कहा: काश तेरे पास वो आँख होती तो तुझे दिखाता मेरा सौदा क्या है! मेरे बाबा! मैं तुम्हें क्या बताऊँ मैं क्या सौदा ख़रीद लाया
हूँ?
 बाप ने बोला: चल छोड़ रहने दे,वो लड़का रोज़ नबी-ए-रहमत सल अल्लाहू अलैही
वआलेही वसल्लम कि ख़िदमत में बैठने लगा।यहूदी का इकलौता बेटा था, बहुत प्यारा था, इसलिए कुछ ना कहा,कुछ दिनों बाद लड़का बहुत बीमार हो गया, काफ़ीदिन बीमार रहा, इतना बीमार हुआ किकमज़ोरी इतनी हो गई करवट लेना मुश्किल होचुकी थी, और फिर क़रीब-उल-मर्ग हो गया, यहूदी बहुत परेशान था, फिर भागा गया हुज़ूर सल अल्लाहू
अलैहि वआलेही वसल्लम की बारगाह में, औरबोला: मैं आपके पास आया हूँ, आप तो जानते ही हैं मैंयहूदी हूँ मुझे आपसे कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं, मगरमेरा लड़का आपको दिल दे गया है, और क़री क़रीबउल-मर्ग है, आपको रात दिन याद कर रहा है, क्या मुम्किन है आप अपनेइस दुश्मन के घर आ कर अपने माशूक़ आशिक़ को एक नज़र देखना पसंद
करोगे? क्या ये आरज़ू पूरी हो जाएगी कि वो मरने सेपहले आपका दीदार कर ले? वो किसी
चीज़ की आरज़ू नहीं कर रहा।आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने येनहीं फ़रमाया मैं जाऊँगा या नहीं जाऊँगा,आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया: अबूबकर! उठो, उमर! उठो, अली! चलो, चलें, उस्मान! आओ,
बाक़ी भी जो सब हैं चलें अपने आशिक़ कादीदार हम भी करें, अपना दीदार उसे
देते हैं। आख़िरी लम्हा है, आँखें बंद करने से पहले उसे हमकुछ देना चाहते हैं, चलो चलते हैं, यहूदी के घर पहुंचे तोलड़के की आँखें बंद थीं,हुज़ूर सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम सरापा करमही करम हैं, लड़के की पेशानी परआप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने अपना दस्तेअक़्दस रखा, लड़के की आँखें खुल गईं, जैसेज़िंदगी लौट आई हो,जिस्म में ताक़त आ गई,नातवानी में जवानी आई, आँखें खोलीं,
रुख़े मुस्तफ़ा सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम पर  नज़र पड़ी, हल्की सी चेहरे पर
मुस्कुराहट आई, लब खुल गए, मुस्कुराहट फैल गई, हुज़ूर सल अल्लाहू
अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया: बस! अब कलमा पढ़
लो।
लड़का अपने बाप का मुंह तकने लगा तो वो यहूदी बोला: मेरा मुंहक्या तकता है? अबुल क़ासिम (मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह सल अल्लाहूअलैही वआलेही वसल्लम) जो कहते हैं करलो।लड़का बोला: या रसूल अल्लाह! सल अल्लाहू अलैहि वआलेहीवसल्लम मेरे पास तो कुछ भी नहीं!आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया: बसतुम कलमा पढ़ो! मैं जानू और जन्नत जाने, तुम मेरे हो, जाओ जन्नतभी तो मेरी है, जन्नत मेँ ले जाना ये मेरा काम है।लड़के ने कलमा पढ़ा, जब उसके मुँह से निकला "मुहम्मद रसूल अल्लाह"रूह बाहर निकल गई, कलमे का नूर अन्दर चला गया, आँखें बंद हुईं, लब
ख़ामोश हुए,उस लड़के का बाप वो यहूदी बोला:ऎ मुहम्मद! (सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम) मैंऔर आप दोनों मुख़ालिफ़ हैं, इसलिये ये लड़का अब मेरा नहीं
रहा, अब ये इस्लाम की मुक़द्दस अमानत है, काशना-ए-नबुव्वत सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम से इसकाजनाज़ा उठे, तब ही इसकी इज़्ज़त है, ले जाओ
इसको।     फिर आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया:सिद्दीक़! उठाओ, ऎ उमर! उठाओ, उस्मान! आगे बढ़ो, बिलाल!
आओ तो सही, अली! चलो दो कंधा, सब उठाओइसको,
आक़ा अलैहिस्सलाम जब यहूदी के घर से निकले तो ये फ़रमातेजा रहे थे:# उस_अल् लाह_का_शुक्र_है_जिसने_मेरे_सदक़े_से_इस_बंदे_को_बख्श_दिया,#उस_अल्लाह_का_शुक्र_है_जिसने_मेरे_सदक़े_से_इस_बंदे_को_बख्श_दिया।(अल्लाहू अकबर! क्या मक़ाम होगा उस आशिक़ की मइयत काजिसको अली, उस्मान, अबू बकर सिद्दीक़, उमर
बिन अल ख़त्ताब, बिलाल-ए-हब्शी रज़ी अल्लाहू अन्हुमा जैसी हस्तियाँ कंधा दे कर ले जा रहे हों, और आगेआगे मुहम्मद-ए-मुस्तफ़ा सल अल्लाहू अलैहि वआलेही
वसल्लम हों)क़ब्र तैयार हुई, कफ़न पहनाया गया, हुज़ूर सल अल्लाहू अलैहि
वआलेही वसल्लम क़ब्र के अंदर तशरीफ़ लेगए, क़ब्र में खड़े हूए, और काफ़ी देर खड़े रहे, और फिरअपने हाथों से उस आशिक़ की मइयत को अंदर उतारा। आपसल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम क़ब्र के अंदर पंजोंके बिल चल रहे थे, पूरा पाँव मुबारक नहीं रख रहे थे,काफ़ी देर के बाद आप सल अल्लाहू अलैहिवआलेही वसल्लम क़ब्र से बाहर आए तो चेहरा परथोड़ी ज़रदी छाई थी, थकन महसूसहुई, (अल्लाहू ग़नी)सहाबा पूछते हैं: हुज़ूर! (सल अल्लाहू अलैहि वआलेहीवसल्लम) ये क्या माजरा है? पहले तो ये बताँए आप सल अल्लाहू अलैहिवआलेही वसल्लम ने क़ब्र में पाँव मुबारक पूरा क्यों     नहीं रखा? आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेहीवसल्लम पंजों के बल क्यों चलते रहे?
तो करीम आक़ा सल अल्लाहू अलैहि वआलेहीवसल्लम ने फ़रमाया: क़ब्र के अंदर बेपनाह फ़रिश्ते आए हुए थे, इसलिएमुझे जहाँ जगह मिलती थी, मैंपंजा ही रखता था, पाँव रखने की जगहनहीं थी, मैं नहीं चाहता थाकिसी फ़रिश्ते के पाँव पर मेरा पाँव आ जाये।
फिर सहाबा ने पूछा: आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही  वसल्लम क़ब्र के अंदर क्यों गए? हमें कहते, हम चले जाते! (तोसुब्हान अल्लाह क्या ख़ूबसूरत जवाब दिया)
कि मैंने उस लड़के को बोला था ना! तेरी क़ब्र को जन्नत बनाऊँगा      तो अब इसी क़ब्र को जन्नत बनाने क़ब्र के अन्दर चला गयाथा।तो फिर हुज़ूर सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम इतनेथके हुए क्यों हैं?थका इसलिए हूँ के फ़रिश्ते और हूरें इस आशिक़ के दीदार केलिए आ रहे थे, और मेरे वजूद से लग लग कर गुज़र रहे उनकी वजह से थक गया हूँ।
1: सुनन अबू दाऊद: जिल्द: 3, /सफ़ह: 185, /हदीस:
3095,
2: मुसनद अहमद बिन हमबल: जिल्द: 3, / सफ़ह: 175, /
हदीस: 12815,
3: हाफ़िज़ इब्ने कसीर: फि तफ़सीर इब्ने
कसीर
हज़रात!!! सुना है फ़रिश्ते नूर हैं, ये कैसा नूर है कि हुज़ूर सल अल्लाहूअलैहि वआलेही वसल्लम थक गए?मालूम हुवा कि फ़रिश्ते नूर तो हैं पर सब से लतीफ़ नूर! नूर-ए-
मुस्तफ़ा सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम का है,"अल्लाहू ग़नी" एक आशिक़ को ये रुतबा-ओ-मुक़ाम मिला किजिसकी कोई मिसाल नहीं।अल्लाह पाक हम सब मुसलमानों को रसूल अल्लाह सल अल्लाहू अलैहिवआलेही वसल्लम के इश्क़ में जीना और मरना
नसीब फ़रमाए.. आमीन सुम्मा आमीन

Saturday 11 July 2015

Nasihat

एक औरत अपने घर से बाहर..
निकली तो देखा कि तीन नूरानी सूरत बुज़ुर्ग उसके घर के बाहर बैठे थे ।उस औरत ने
कहा कि मैँ आपको जानती तो नहीं लेकिनआप लोग परदेसी लगते हो इसलिए

Achchha kirdar


अख़लाक़, अच्छे किरदार बहुत ही बेहतरीन इन्सानी ख़ूबियाँ हैं। अल्लाह ने अपने प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अख़लाक़े करीमा का बहुत ही बुलन्द मर्तबा अता फ़रमाया था, ख़ुद अल्लल्लाह के हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरषाद फ़रमाते हैं कि ‘‘ मैं दुनिया वालों को बेहतरीन अख़लाक़ की तालीम देने के लिए भेजा गया हूँ’’। इससे यह भी पता चला कि जो आदमी जिस चीज़ की तालीम दे, नसीहत करे सबसे पहले वह ख़ूबी ख़ुद उसके अन्दर होना चाहिए।
अल्लाह के फ़रमान और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर अमल करने वाले अख़लाक़ की अज़मत और उसकी अहमियत से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं। हमारे बुज़ुर्गाें के अख़लाक़े हसना की बदौलत ही कुफ्र के घोर अंधेरों में ईमान की शमएं जली हैं, अख़लाक़ की बदौलत ही जानी दुश्मन जान कुर्बान करने वाले बन गए। इस्लाम अपनी इसी ख़ूबी से दुनिया में फैला है, तलवार के ज़ोर से नहीं। तलवार के ज़ोर से क़ौमें अपनी हुकूमतें ज़रूर क़ाइम कर सकती हैं लेकिन अपना दीन नहीं फैला सकतीं। दीन की तबलीग़ करने वाले सूफ़ियाए किराम, औलियाए इज़ाम व उलमाए किराम के पास कोई फ़ौज नहीं थी, कोई हथियार नहीं था, बल्कि उनके पास हुस्ने अख़लाक़ और अच्छे किरदार का ऐसा बेमिसाल हथियार था जिससे बिना किसी वार ही के आदमी मुहब्बत की ज़न्जीरों में गिरफ़्तार हो जाता था।
हज़रत शैख़ सअ़दी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब बोसताँ में एक वाक़िआ बयान फ़रमाया है कि, एक फ़क़ीर मदीना शरीफ़ की एक गली में बैठा हुआ थ, इत्तेफ़ाक़ से उधर से अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदि अल्लाहु अन्हु का गुज़र हुआ, बेख़याली में आपका पैर फ़क़ीर के पैर पर पड़ गया। वह नाराज़ होकर चिल्लायाः क्या तू अन्धा है? आपने बड़ी नर्मी से जवाब देते हुए फ़रमायाः भाई! अन्धा तो नहीं हूँ, लेकिन मुझ से ग़लती ज़रूर हो गई, मेहरबानी करके मुझे माफ़ करदो। अल्लाहो अकबर, यहीं हैं वह मुबारक हस्तियाँ जिनकी ज़िन्दगी हमारे लिए नमूना है, जिनकी ग़ुलामी पर हमें नाज़ है। ग़ौर कीजिए, पूरी इस्लामी दुनिया का सरबराह होते हुए एक फ़क़ीर की बदकलामी पर ऐसा जवाब व बर्ताव व इज़हारे अफ़सोस। आप फ़रमाया करते थे कि अगर इन्सान के अन्दर नौ खूबियाँ हों और एक नुक़्स (बुराई) बद अख़लाक़ी हो, तो यही एक ऐब सब अच्छाइयों पर पानी फेर देगा।
हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह खैयात रहमतुल्लाह अलैह गुज़र बसर के लिए सिलाई किया करते थे, आपका एक मजूसी ग्राहक भी था, वह आपसे ही कपडे़ सिलवाया करता था और सिलाई के बदले खोटा सिक्का पकड़ा दिया करता था, आप हमेशा वह खोटा सिक्का रख़ लिया करते थे, कभी उससे शिकायत न की। इत्तेफ़ाक़ से एक बार आप दुकान पर न थे, मजूूसी अपने कपड़े लेने आया और आदत के मुताबिक़ खोटा सिक्का आपके शागिर्द को दिया तो उन्होंने लेने से इन्कार कर दिया। जब आप तशरीफ़ लाए तो शागिर्द ने आपसे मजूसी की बात कही, आपने फ़रमायाः तुमने लिया क्यों नहीं? कई साल से वह मुझे हमेशा खोटा सिक्का ही देता आ रहा है, मैं उसे जान बूझ कर इसलिए ले लेता हूँ ताकि वह किसी दूसरे मुसलमान भाई को न दे।
बुज़र्गाें के अख़लाक़ तो देखिये, अपने दीनी भाई का ख़्याल करते हुए ख़ुद नुक़सान उठा लेते हैं, लेकिन क़ौम को नुक़सान में पड़ते नहीं देख सकते। आज हमारा हाल यह है कि हम खोटा सिक्का, रुपया और सामान ऐब छुपाकर किसी और को टिका देने को अपना हुनर समझते हैं, जब्कि शरीअ़त का हुक्म यह है कि अगर सामान में कोई ख़राबी और ऐब हो तो लेने वाले को बता देना ज़रूरी है। यही ईमान का तक़ाज़ा है, मोमिन कभी किसी को धोका नहीं देता।

Tuesday 7 July 2015

Shabe baraat


शब ए बराअत की नफ्ल नमाज़ें

  दो रकात तहियतुल वुजू इस तरह पढ़ें कि हर रकात में सुरह फातिहा (अलहम्दु शरीफ) के बाद एक बार आयतल कुर्सी और तीन बार सुरह इखलास (कुल्हुवाल्लाह शरीफ) पढ़ें|
       फज़ीलत:- हर कतरा पानी के बदले सात सौ रकात नफिल नमाजों का सवाब मिलेगा |
v  दो रकात नमाज़ इस तरह पढ़ें कि हर रकात में सुरह फातिहा (अलहम्दु शरीफ) के बाद एक बार आयतल कुर्सी और पन्द्रह बार सुरह इखलास (कुल्हुवाल्लाह शरीफ) पढ़ें| सलाम फेरने के बाद सौ बार दुरूद शरीफ पढ़ें|
     फज़ीलत:- रोज़ी में बरकत, रंजो गम से निजात, गुनाहों की बख्शीश और मगफिरत हासिल हो|
v  आठ रकात नमाज़ (दो-दो रकात करके) इस तरह पढ़ें कि हर रकात में सुरह फातिहा (अलहम्दु शरीफ) के बाद पाँच बार सुरह इखलास (कुल्हुवाल्लाह शरीफ) पढ़ें|
      फज़ीलत:- गुनाहों से पाक साफ़ होगा, दुआएं कुबूल होंगी, सवाब ए अज़ीम हासिल होगा|
v  बारह रकात नमाज़ (दो-दो रकात करके) इस तरह पढ़ें कि हर रकात में सुरह फातिहा (अलहम्दु शरीफ) के बाद दस बार सुरह इखलास (कुल्हुवाल्लाह शरीफ) पढ़ें| बारह रकात पढ़ने के बाद दस बार कलमा ए तौहीद, दस बार कलमा ए तमजीद और दस बार दुरूद शरीफ पढ़ें|
v  चौदह रकात नमाज़ (दो-दो रकात करके) इस तरह पढ़ें कि हर रकात में सुरह फातिहा (अलहम्दु शरीफ) के बाद जो सुरह चाहे पढ़ें|
      फज़ीलत:- जो भी दुआएं मांगे कुबूल होंगी |
v  चार रकात नमाज़ (एक सलाम से) इस तरह पढ़ें कि हर रकात में सुरह फातिहा (अलहम्दु शरीफ) के बाद पचास बार सुरह इखलास (कुल्हुवाल्लाह शरीफ) पढ़ें|
      फज़ीलत:- गुनाहों से ऐसा पाक साफ़ हो जाये जेसे माँ के पेट से अभी पैदा हुआ हो|
v  आठ रकात नमाज़ (एक सलाम से) इस तरह पढ़ें कि हर रकात में सुरह फातिहा (अलहम्दु शरीफ) के बाद ग्यारह बार सुरह इखलास (कुल्हुवाल्लाह शरीफ) पढ़ें| फिर इसका सवाब हजरत फातिमा ज़हरा की बारगाह में नज़र करें|
     फज़ीलत:- कियामत के रोज जब तक खातून ए जन्नत शफाअत करवा के जन्नत में न भेज देंगी, खुद जन्नत में क़द
अहले सुन्नत के नाम रज़वी नेटवर्क का पैगाम
अस्सलामु अलय्कुम व रहमतुल्लाह व बरकतहु :
आप इसे पढ़ें और अपने दोस्तों को सेंड भी करें :
माह शाबान की अज़मत व फ़ज़ीलत अहदीसे मुबारका में आई हैं : यही वह मुबारक महीना जिसको मेरे आक़ा ﷺ ने अपना महीना कहा है : यही वह मुबारक महीना है जिसकी १५ वीं शब को बेशुमार लोगों
की मग़फ़ेरत होती हैं : तमामी मसलके आला हज़रत के मानने वाले जन्नती से मेरी इल्तेमास है की
आपसी इख्तेलाफ़ात को भूलकर एक दूसरे अपनी गलती की माफ़ी चाहें और दिलों से बुग्ज़ हसद किना
को दूर करें : हम सब यह अहद करें की महब्बत सिर्फ अल्लाह के लिय किसी से नफरत भी सिर्फ अल्लाह व रसूल के वास्ते करेंगे इंशा अल्लाह :[ हमें आपस में इत्तेहाद व यकजहती के साथ मिलजुलकर मसलक व मज़हब और कॉम व मिललत की बेहतरीन खिदमत करनी है पूरी दुनियां के
मुसलमानों के वास्ते दुआये ख़ैर करनी है :] अपने गावं के किब्रिस्तानों में जाकर मज़रात पर जाकर इसाले सवाब करें : घरों में फातेहा ख्वानी करें अल्लाह से दुआ है की अपने मेहबूब के सदक़े हमारे मर्हूमीन की मग़फ़ेरत फ़रमाए आमीन

Tuesday 24 March 2015

awliya allah in hindi

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 बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

हजरत इब्राहीम इब्ने अदहम रहमतुल्लाह अलैह बलख के बादशाह थे बहुत बडी आपकी हुकुमत थी जिन्होने राहे खुदा मे दुनियावी सल्तनत छोड दी आप एक दिन दरिया किनारे बैठै अपने हाथ अपना पैरहन सी रहे थे
कि वहा  एक आदमी गुजरा उस आदमी ने इस हाल मे देखा तो दिल मे कहा कि उन्होने सल्तनत छोडकर इस फकीरी मे क्या हासिल किया हजरत को रौशन हो गया और आपने झट वह सुई दरिया मे डाल दीऔर फिर बाआवाज बुलंद फरमाया कि ऐ दरिया की मछलियो मुझे मेरी सुई वापस लाओ उस अमीर ने देखा की हजारो मछलिया अपने मुह मे सोने की सुई पकडे हुए दरिया के बाहर निकल आयी आपने फरमाया मुझे मेरी सुई चाहिए चुनाचे एक छोटी सी मछली आपकी सुई पकडे हुए लायी अब आपन उस आदमी की तरफ मुतवज्जह होकर फरमाया कि बताओ वह हुकूमत अच्छी है या यह हुकूमत
सबक♨♨♨♨♨
अल्लाह वाले दिल के ख्याल को भी जान लेते है और उनकी हुकुमत दरियाओ और मछलियो पर भी हो जाती हैऐश और इशरत की जिन्दगी के साथ खुदा को पा लेने का ख्याल गलत है
ग़रीब नवाज़(rahmatullahi alaihe) एकबारअपने मुरीदों के साथ सफकर रहे थे।आप का गुज़र एक जंगल सेहुआ।वहाँ आतिश परस्तों (आगपूजने वालों )का एक गिरोह आगकी पूजा कररहा था।उन की रियाज़त(बर्दाश्त करने की क़ुव्वत)इस क़दरबड़ी हुई थी कि छ: छ:महीने तक बगैरखाये पिए रहते थे।अक्सर उन की सख्तरियाज़त से लोगइस क़दर प्रभावित होतेकि उन सेअक़ीदत रखने लगते।उन की इस हरकत से लोग
गुमराहहो जाते थे।हज़रत ख़्वाजा साहब(rahmatullahi alaihe) नेजबउनकी यह हालतदेखी तो उन से पूछा -
"ए गुमराहो !ख़ुदा को छोड़कर आगकी पूजा क्यो करतेहो....?उन्होने कहा -"आग को हमइसलिए पूजतेहैं कि यह हमें दोज़ख मेंतकलीफ नपहुँचाए।"हज़रत गरीब नवाज़ (र0 अ0)नेफरमाया - "यहतरीका दोज़ख़ सेछुटकारे का नही है।जब तक खुदा की इबादतनही करोगे ,दोज़ख़ सेछुटकारा नहीं पाओगे।तुम लोग आग को इतने दिनसे पूज रहेहो,ज़रा इसको हाथ में लेकर    देखो तो मालूमहोगा कि आग पूजनेका क्या फायदा है।उन्होने जवाब दिया बेशकये हमको जला देगी।क्योंकि आग का कामही जला देनेका है।मगर हम को यह कैसे यक़ीनहो कि ख़ुदा की इबादतकरनेवालों को आग नजला सकेगी..?अगर आप आग को हाथ मेंउठा लेंतो हमको यक़ीनहो जायेगा।सरकार ग़रीब नवाज़ (र0अ0) ने जोश मेआकर फरमाया - "मुझको तो क्या,ख़ुदा के बन्दे मुईनुद्दीनकी जूतियों तकको आनहीं जला सकती । "आप ने उसी दमअपनी जूतियाँ आग केअलाव में डालते हुएआग की तरफ इशारा करकेफरमाया - "ए आग ! अगर येजूतियाँ ख़ुदा केकिसी मक़बूल बन्दे की हैंइनको ज़रा भीआँचनआये।"जूतियों का आग मेंपहुँचना था कि तुरन्त आगबुझ गयीऔर जूतियाँ एकदमसही सलामतही रहींइस करामत को देखकर आगपूजने वालों को हैरतकी इंतेहा नरहीफिर खुद से उन लोगो ने हजरतकेहाथ परकलमा पढ़ा औरमुसलमान हो गये ।-सुब्हानल्लाह ।

एक नौजवान विदेश से पड़ाई करके एक लम्बे वक्त केबाद घर लौटा और उसने अपने माँ बाप से
किसी ऐसे धार्मिक शख्स को खोजने के लिएकहा जो उसके तीन सवालों का जवाब दे सके ।उसके बाप ने एक मुसलमान आलिम को बुलाया औरउसके सवालों के जबाब देने की दरख्वास्त कीनौजवान आलिम से: आप कौन होआलिम : मैं सबसे पहले अल्लाह का बन्दा हूँ फिरमुसलमान हूँनौजवान: क्या आप यकीन रखते हैं की मेरेसवालों का जवाब आप दे सकेंगे जबकि आज तककोई मेरे सवालों का तसल्लीबख्श जवाब नही देसका हैआलिम: अल्लाह ने चाहा तो मैं पूरी कोशिकरूंगा
नौजवान ने कहा मेरे तीन सवाल है ये
1.क्या अल्लाह का वुजूद है ? अगर हैतो उसकी बनावट या चेहरा कैसा है ?
2.तक़दीर क्या है?
3.अगर शैतान आग से बना हुआ है और आखिर मेंउसको जहन्नुम में फेंका जाएगा जो की आग से
बनी हुई है फिर तो यकीनन जहन्नुम उसको नुक्साननही पहुंचा सकेगी क्युकी दोनों ही आग से बने हुए
हैं क्या अल्लाह ने इस बारे में पहलेनही सोचा था?
सवाल सुनते ही गुस्से में आलिम ने नौजवान के चेहरेपर ज़ोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया
नौजवान (अपने हाथ को गाल पर रख दर्द महसूसकरते हुए) : आप मुझ पर गुस्सा क्यों हो रहे हैं
जबकि आपको बुलाया ही मेरे सवालों के जवाबदेने के लिय थाआलिम: मै गुस्सा नही हुआ बल्कि ये थप्पड़तुम्हारेतीनो सवाल का जवाब हैनौजवान:मैं कुछ समझा नहीआलिम:थप्पड़ खाने के बाद तुमने क्या महसूसकियानौजवान: मुझे दर्द महसूस हुआआलिम:यानी तुमे यकीन है की दर्द का वुजूद है
नौजवान: हाँ बिलकुलआलिम: क्या तुम दर्द का चेहरा या उसकी बनावट देख सकते होनौजवान: नही
आलिम : ये मेरा पहले सवाल का जवाब है हम सबखुदा की मौजूदगी को सिर्फ महसूस कर सकते हैंबिना उसके चेहरे या बनावट को देखेक्या तुमने रात में ख्वाब में देखा था की मैं तुम्हेथप्पड़ मारूंगानौजवान: नहीआलिम: क्या तुमने सोचा था की अभी मै तुम्हेथप्पड़ मारूंगानौजावान : नही
आलिम: ये तकदीर हैऔर जिस हाथ से मैंने तुम्हे थप्पड़ मारा वो किचीज़ का बना हैनौजवान: मांस ( गोश्त )का
आलिम: और तुम्हारा गाल किस चीज़का बना हुआ हैनौजवान: वो भी मांस यानी गोश्त का बना हैआलिम:जब थप्पड़ पड़ा तो तुमने क्या महसूस कियानौजवान: दर्दआलिम:इसी तरह शैतान और जहन्नुम दोनों आग केबने हुए हैं और (अल्लाह ने चाहा तो) जहन्नुम शैतान
लिए और ज्यादा दर्दनाक जगह होगी !!
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~मत लड़ो आपस में नहीं तो बिखर जाओगे~
~मौत आने से पहले ही खुद की नज़रों में मर जाओगे~
~हो मुसलमान तो मिसाल बन कर उभरो दुनिया के लिए~
~नहीं तो इतिहास के चंद पन्नो में सिमट जाओगे।~
     ~हिफाज़त करो ईमान की~
~इबादत करो रहमान की~
   ~तिलावत करो कुरआन की~ ~पुकार सुनो अज़ान की~
~क्योकि नमाज शान है मुसलमान की।~ 
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प्यार करना उसका उसूल है ,दुनिया की मोह्ब्बत फिजूल है ,
मां की हर दुआ कबूल है ,मां को नाराज करना इंसान तेरी भूल है ,मां के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है ,
अगर अपनी मां से है प्यार तोअपने सभी दोस्तो को सेन्ड करे वरना ,ये मेसेज आपके लिये फिजूल है.             खुदा तो रिज़क देता है कीड़ो को पत्थर में। तू क्यों परेशान है हीरे मोती के चक्कर में ।
उड़ा जा आसमान में या लगा गोता समन्दर में । तुझे उतना ही मिलेगा जितना है तेरे मुकद्दर में ।।....अपनी अंधेरी कब्र को खुद ही रोशन करने की तय्यारी करलेए इंसानआज जिन्दो से कोई वफा नही करताकल मुर्दो के लिए कोन दुआ करेगाहमे गुरुर ओ फकर है अपने मज़हब पर औरमुसलमान होने परऐ खुदा हम दुआ करते है हमेँ ज़िँदा रख तो ईमानपर और मौत देँ तो ईस्लाम परआईना कुछ ऐसा बना दे
ए खुदा ,जो चेहरा नहीं नीयत दिखा दे
कदर करनी है, तो जीते जी करो,  जनाजा उठाते 
वक्त तो नफरतकरने वाले भी रो पड़ते है ।
जिन आँखों को सजदे में....,रोने की आदत हो........,
वो आँखें कभी अपने.....,मुक्कदर पर रोया नहीं करती.......,
कमाई तो जनाज़े के दिन पता चलेगी..
दौलत तो कोई भी कमा लैता हे……

Pehli muharram ka asardar wazifa rozi me barkat ka

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