Sunday 12 July 2015

sahabi larka

एक यहूदी आशिक़-ए-रसूल सल अल्लाहू अलैहीवआलेही वसल्लम के इश्क़ और ईमान लाने कि बहोतप्यारी हदीस-ए-मुबारका,,,,एक यहूदी ने अपने बेटे को कहा: जाओ सौदा ले आओ तो वोगया, लड़का रास्ते से गुज़र रहा था कि उसकी नज़र हुज़ूर सलअल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम पर पड़ी औरहुज़ूर सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम
की नज़र उस लड़के पर पड़ी, वो वहींबैठ गया और वहीं बैठा रह गया और देर हो गई।
वो यहूदी कभी अंदर जाता कभी बाहरआता कि लड़का कहाँ रह गया, आया नहीं अभी
तक, सूरज ग़ुरूब हो गया मग़रिब की नमाज़ हो गई, शाम को घरगया बाप ने पूछा: अरे नादान इतनी ताख़ीर कियुँ? बापबहुत ग़ुस्से में कि बड़ा नादान और पागल है मैंने कहा था जल्दीआना तुम इतनी देर कर के आए हो और तुम्हें सौदा लेने भेजाथा तुम ख़ाली हाथ वापिस आ गए हो, सौदा कहाँ है? सौदा कहाँहै?बेटा बोला: सौदा तो मैं ख़रीद चुका हूँ।
बाप: क्या पागल आदमी हो तुम? मैंने तुझे सौदा लेने भेजा था,सौदा तुम्हारे पास है नहीं, और कहता है ख़रीदचुका हूँ।बेटा कहता है: बाबा! यक़ीन करें, सौदा ख़रीद आया
हूँ।बाप बोला: तो दिखा कहाँ है?बेटे ने कहा: काश तेरे पास वो आँख होती तो तुझे दिखाता मेरा सौदा क्या है! मेरे बाबा! मैं तुम्हें क्या बताऊँ मैं क्या सौदा ख़रीद लाया
हूँ?
 बाप ने बोला: चल छोड़ रहने दे,वो लड़का रोज़ नबी-ए-रहमत सल अल्लाहू अलैही
वआलेही वसल्लम कि ख़िदमत में बैठने लगा।यहूदी का इकलौता बेटा था, बहुत प्यारा था, इसलिए कुछ ना कहा,कुछ दिनों बाद लड़का बहुत बीमार हो गया, काफ़ीदिन बीमार रहा, इतना बीमार हुआ किकमज़ोरी इतनी हो गई करवट लेना मुश्किल होचुकी थी, और फिर क़रीब-उल-मर्ग हो गया, यहूदी बहुत परेशान था, फिर भागा गया हुज़ूर सल अल्लाहू
अलैहि वआलेही वसल्लम की बारगाह में, औरबोला: मैं आपके पास आया हूँ, आप तो जानते ही हैं मैंयहूदी हूँ मुझे आपसे कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं, मगरमेरा लड़का आपको दिल दे गया है, और क़री क़रीबउल-मर्ग है, आपको रात दिन याद कर रहा है, क्या मुम्किन है आप अपनेइस दुश्मन के घर आ कर अपने माशूक़ आशिक़ को एक नज़र देखना पसंद
करोगे? क्या ये आरज़ू पूरी हो जाएगी कि वो मरने सेपहले आपका दीदार कर ले? वो किसी
चीज़ की आरज़ू नहीं कर रहा।आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने येनहीं फ़रमाया मैं जाऊँगा या नहीं जाऊँगा,आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया: अबूबकर! उठो, उमर! उठो, अली! चलो, चलें, उस्मान! आओ,
बाक़ी भी जो सब हैं चलें अपने आशिक़ कादीदार हम भी करें, अपना दीदार उसे
देते हैं। आख़िरी लम्हा है, आँखें बंद करने से पहले उसे हमकुछ देना चाहते हैं, चलो चलते हैं, यहूदी के घर पहुंचे तोलड़के की आँखें बंद थीं,हुज़ूर सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम सरापा करमही करम हैं, लड़के की पेशानी परआप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने अपना दस्तेअक़्दस रखा, लड़के की आँखें खुल गईं, जैसेज़िंदगी लौट आई हो,जिस्म में ताक़त आ गई,नातवानी में जवानी आई, आँखें खोलीं,
रुख़े मुस्तफ़ा सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम पर  नज़र पड़ी, हल्की सी चेहरे पर
मुस्कुराहट आई, लब खुल गए, मुस्कुराहट फैल गई, हुज़ूर सल अल्लाहू
अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया: बस! अब कलमा पढ़
लो।
लड़का अपने बाप का मुंह तकने लगा तो वो यहूदी बोला: मेरा मुंहक्या तकता है? अबुल क़ासिम (मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह सल अल्लाहूअलैही वआलेही वसल्लम) जो कहते हैं करलो।लड़का बोला: या रसूल अल्लाह! सल अल्लाहू अलैहि वआलेहीवसल्लम मेरे पास तो कुछ भी नहीं!आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया: बसतुम कलमा पढ़ो! मैं जानू और जन्नत जाने, तुम मेरे हो, जाओ जन्नतभी तो मेरी है, जन्नत मेँ ले जाना ये मेरा काम है।लड़के ने कलमा पढ़ा, जब उसके मुँह से निकला "मुहम्मद रसूल अल्लाह"रूह बाहर निकल गई, कलमे का नूर अन्दर चला गया, आँखें बंद हुईं, लब
ख़ामोश हुए,उस लड़के का बाप वो यहूदी बोला:ऎ मुहम्मद! (सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम) मैंऔर आप दोनों मुख़ालिफ़ हैं, इसलिये ये लड़का अब मेरा नहीं
रहा, अब ये इस्लाम की मुक़द्दस अमानत है, काशना-ए-नबुव्वत सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम से इसकाजनाज़ा उठे, तब ही इसकी इज़्ज़त है, ले जाओ
इसको।     फिर आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया:सिद्दीक़! उठाओ, ऎ उमर! उठाओ, उस्मान! आगे बढ़ो, बिलाल!
आओ तो सही, अली! चलो दो कंधा, सब उठाओइसको,
आक़ा अलैहिस्सलाम जब यहूदी के घर से निकले तो ये फ़रमातेजा रहे थे:# उस_अल् लाह_का_शुक्र_है_जिसने_मेरे_सदक़े_से_इस_बंदे_को_बख्श_दिया,#उस_अल्लाह_का_शुक्र_है_जिसने_मेरे_सदक़े_से_इस_बंदे_को_बख्श_दिया।(अल्लाहू अकबर! क्या मक़ाम होगा उस आशिक़ की मइयत काजिसको अली, उस्मान, अबू बकर सिद्दीक़, उमर
बिन अल ख़त्ताब, बिलाल-ए-हब्शी रज़ी अल्लाहू अन्हुमा जैसी हस्तियाँ कंधा दे कर ले जा रहे हों, और आगेआगे मुहम्मद-ए-मुस्तफ़ा सल अल्लाहू अलैहि वआलेही
वसल्लम हों)क़ब्र तैयार हुई, कफ़न पहनाया गया, हुज़ूर सल अल्लाहू अलैहि
वआलेही वसल्लम क़ब्र के अंदर तशरीफ़ लेगए, क़ब्र में खड़े हूए, और काफ़ी देर खड़े रहे, और फिरअपने हाथों से उस आशिक़ की मइयत को अंदर उतारा। आपसल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम क़ब्र के अंदर पंजोंके बिल चल रहे थे, पूरा पाँव मुबारक नहीं रख रहे थे,काफ़ी देर के बाद आप सल अल्लाहू अलैहिवआलेही वसल्लम क़ब्र से बाहर आए तो चेहरा परथोड़ी ज़रदी छाई थी, थकन महसूसहुई, (अल्लाहू ग़नी)सहाबा पूछते हैं: हुज़ूर! (सल अल्लाहू अलैहि वआलेहीवसल्लम) ये क्या माजरा है? पहले तो ये बताँए आप सल अल्लाहू अलैहिवआलेही वसल्लम ने क़ब्र में पाँव मुबारक पूरा क्यों     नहीं रखा? आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेहीवसल्लम पंजों के बल क्यों चलते रहे?
तो करीम आक़ा सल अल्लाहू अलैहि वआलेहीवसल्लम ने फ़रमाया: क़ब्र के अंदर बेपनाह फ़रिश्ते आए हुए थे, इसलिएमुझे जहाँ जगह मिलती थी, मैंपंजा ही रखता था, पाँव रखने की जगहनहीं थी, मैं नहीं चाहता थाकिसी फ़रिश्ते के पाँव पर मेरा पाँव आ जाये।
फिर सहाबा ने पूछा: आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही  वसल्लम क़ब्र के अंदर क्यों गए? हमें कहते, हम चले जाते! (तोसुब्हान अल्लाह क्या ख़ूबसूरत जवाब दिया)
कि मैंने उस लड़के को बोला था ना! तेरी क़ब्र को जन्नत बनाऊँगा      तो अब इसी क़ब्र को जन्नत बनाने क़ब्र के अन्दर चला गयाथा।तो फिर हुज़ूर सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम इतनेथके हुए क्यों हैं?थका इसलिए हूँ के फ़रिश्ते और हूरें इस आशिक़ के दीदार केलिए आ रहे थे, और मेरे वजूद से लग लग कर गुज़र रहे उनकी वजह से थक गया हूँ।
1: सुनन अबू दाऊद: जिल्द: 3, /सफ़ह: 185, /हदीस:
3095,
2: मुसनद अहमद बिन हमबल: जिल्द: 3, / सफ़ह: 175, /
हदीस: 12815,
3: हाफ़िज़ इब्ने कसीर: फि तफ़सीर इब्ने
कसीर
हज़रात!!! सुना है फ़रिश्ते नूर हैं, ये कैसा नूर है कि हुज़ूर सल अल्लाहूअलैहि वआलेही वसल्लम थक गए?मालूम हुवा कि फ़रिश्ते नूर तो हैं पर सब से लतीफ़ नूर! नूर-ए-
मुस्तफ़ा सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम का है,"अल्लाहू ग़नी" एक आशिक़ को ये रुतबा-ओ-मुक़ाम मिला किजिसकी कोई मिसाल नहीं।अल्लाह पाक हम सब मुसलमानों को रसूल अल्लाह सल अल्लाहू अलैहिवआलेही वसल्लम के इश्क़ में जीना और मरना
नसीब फ़रमाए.. आमीन सुम्मा आमीन

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