Saturday 11 July 2015

Achchha kirdar


अख़लाक़, अच्छे किरदार बहुत ही बेहतरीन इन्सानी ख़ूबियाँ हैं। अल्लाह ने अपने प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अख़लाक़े करीमा का बहुत ही बुलन्द मर्तबा अता फ़रमाया था, ख़ुद अल्लल्लाह के हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरषाद फ़रमाते हैं कि ‘‘ मैं दुनिया वालों को बेहतरीन अख़लाक़ की तालीम देने के लिए भेजा गया हूँ’’। इससे यह भी पता चला कि जो आदमी जिस चीज़ की तालीम दे, नसीहत करे सबसे पहले वह ख़ूबी ख़ुद उसके अन्दर होना चाहिए।
अल्लाह के फ़रमान और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर अमल करने वाले अख़लाक़ की अज़मत और उसकी अहमियत से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं। हमारे बुज़ुर्गाें के अख़लाक़े हसना की बदौलत ही कुफ्र के घोर अंधेरों में ईमान की शमएं जली हैं, अख़लाक़ की बदौलत ही जानी दुश्मन जान कुर्बान करने वाले बन गए। इस्लाम अपनी इसी ख़ूबी से दुनिया में फैला है, तलवार के ज़ोर से नहीं। तलवार के ज़ोर से क़ौमें अपनी हुकूमतें ज़रूर क़ाइम कर सकती हैं लेकिन अपना दीन नहीं फैला सकतीं। दीन की तबलीग़ करने वाले सूफ़ियाए किराम, औलियाए इज़ाम व उलमाए किराम के पास कोई फ़ौज नहीं थी, कोई हथियार नहीं था, बल्कि उनके पास हुस्ने अख़लाक़ और अच्छे किरदार का ऐसा बेमिसाल हथियार था जिससे बिना किसी वार ही के आदमी मुहब्बत की ज़न्जीरों में गिरफ़्तार हो जाता था।
हज़रत शैख़ सअ़दी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब बोसताँ में एक वाक़िआ बयान फ़रमाया है कि, एक फ़क़ीर मदीना शरीफ़ की एक गली में बैठा हुआ थ, इत्तेफ़ाक़ से उधर से अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदि अल्लाहु अन्हु का गुज़र हुआ, बेख़याली में आपका पैर फ़क़ीर के पैर पर पड़ गया। वह नाराज़ होकर चिल्लायाः क्या तू अन्धा है? आपने बड़ी नर्मी से जवाब देते हुए फ़रमायाः भाई! अन्धा तो नहीं हूँ, लेकिन मुझ से ग़लती ज़रूर हो गई, मेहरबानी करके मुझे माफ़ करदो। अल्लाहो अकबर, यहीं हैं वह मुबारक हस्तियाँ जिनकी ज़िन्दगी हमारे लिए नमूना है, जिनकी ग़ुलामी पर हमें नाज़ है। ग़ौर कीजिए, पूरी इस्लामी दुनिया का सरबराह होते हुए एक फ़क़ीर की बदकलामी पर ऐसा जवाब व बर्ताव व इज़हारे अफ़सोस। आप फ़रमाया करते थे कि अगर इन्सान के अन्दर नौ खूबियाँ हों और एक नुक़्स (बुराई) बद अख़लाक़ी हो, तो यही एक ऐब सब अच्छाइयों पर पानी फेर देगा।
हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह खैयात रहमतुल्लाह अलैह गुज़र बसर के लिए सिलाई किया करते थे, आपका एक मजूसी ग्राहक भी था, वह आपसे ही कपडे़ सिलवाया करता था और सिलाई के बदले खोटा सिक्का पकड़ा दिया करता था, आप हमेशा वह खोटा सिक्का रख़ लिया करते थे, कभी उससे शिकायत न की। इत्तेफ़ाक़ से एक बार आप दुकान पर न थे, मजूूसी अपने कपड़े लेने आया और आदत के मुताबिक़ खोटा सिक्का आपके शागिर्द को दिया तो उन्होंने लेने से इन्कार कर दिया। जब आप तशरीफ़ लाए तो शागिर्द ने आपसे मजूसी की बात कही, आपने फ़रमायाः तुमने लिया क्यों नहीं? कई साल से वह मुझे हमेशा खोटा सिक्का ही देता आ रहा है, मैं उसे जान बूझ कर इसलिए ले लेता हूँ ताकि वह किसी दूसरे मुसलमान भाई को न दे।
बुज़र्गाें के अख़लाक़ तो देखिये, अपने दीनी भाई का ख़्याल करते हुए ख़ुद नुक़सान उठा लेते हैं, लेकिन क़ौम को नुक़सान में पड़ते नहीं देख सकते। आज हमारा हाल यह है कि हम खोटा सिक्का, रुपया और सामान ऐब छुपाकर किसी और को टिका देने को अपना हुनर समझते हैं, जब्कि शरीअ़त का हुक्म यह है कि अगर सामान में कोई ख़राबी और ऐब हो तो लेने वाले को बता देना ज़रूरी है। यही ईमान का तक़ाज़ा है, मोमिन कभी किसी को धोका नहीं देता।

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