* मस्जिदका अदबो-एहतराम
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1. मसअला:- जिस शख्स पर जनाबतका ग़ुस्ल फ़र्ज़ है, ऐसे शख्सको मस्जिदमे जाना हराम है.
📚(हवाला:- बहारे शरीयत, हिस्सा-2, सफा-39)
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2. मसअला:- मस्जिदमे सवाल करना याने भीख मांगना हराम यही और उस सवाल करनेवाले (भीखमांगने वाले) को देना भी मना है.
📚(हवाला:- बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-184)
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3. मसअला:- मस्जिदमे गुमशुदा याने खोई हुई चीज़ तलाश करना मना है.
📚(हवाला:- बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-184, फतव -ऐ-रज़वीययह, जिल्द-3, सफा-593)
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4. मसअला:- मस्जिदमे खरीदो-फरोख्त करना जाइज़ नहीं है.
📚(हवाला:- बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-185, फतव -ऐ-रज़वीययह, जिल्द-3, सफा-593/594)
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5. मसअला:- मस्जिदमे खाना-पीना और सोना एत्तेकाफकी जिसने निय्यत की हो, या मुसाफिर हो, उसके और परदेशी ावा किसीको जाएज़ नहीं है. लेहाज़ा अगर मस्जिदमे खाने-पिनेका इरादा हो तो एत्तेकाफकी निय्यत करे और कुछ देर ज़िक्रो- अज़्कार और नमाज़-इबादात करे फिर खाए-पिए या सोए.
📚(हवाला:- बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-184, फतव -ऐ-रज़वीययह, जिल्द-3, सफा-593/595)
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6. मसअला:-मस्जिदमे कच्चा लहसन और प्याज खाना या खाकर जाना जाएज़ नहीं जब तक मुहमे बू बाकी हो. क्योकि फरिस्तोंको उससे तकलीफ होती है.
📚(हवाला:- बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-184, फतव -ऐ-रज़वीययह, जिल्द-3, सफा-598)
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7. मसअला:- मस्जिदका कूड़ा-कचरा ज़ाद करके ऐसी जगहं na डाले जहा बे-अदबी हो.
📚(हवाला:- दुर्रे मुख्तार, बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-184)
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8. मसअला:- मुहाब बातेभी मस्जिदमे करनेकी इज़ाज़त नहीं और आवाज़ बुलंद करना भी जाएज़ नहीं है.
📚(हवाला:- दुर्रे मुख्तार, बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-185)
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9. मसअला:- मस्जिदमे हँसना कबरमे अँधेरी लाता है. मस्जिदमे हँसनेकी सख्त
मुमानियत (मनाई) वारिद है.
📚(हवाला:-अह्कामे शरीयत, हिस्सा-1, मसला -31, सफा-74)
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10. मसअला:- मस्जिदको रास्ता बनाना यानि उसमेसे होकर गुज़रना ना-जाएज़ है.
अगर इस की आदत करे तो फ़ासिक़ है.
📚(हवाला:- दुर्रे मुख्तार, रद्दुल मोहतार, बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-182)
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11. मसअला:- सरकारे दोआलम सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लमका इरशाद है के अपनी मस्जिदोंको बच्चो, अपने ना-समाज बच्चो और मजनोनो (पागलो) के jaanese और kharid-फरोख्तसे और ज़ग्दो और और आवाज़ बुलंद करनेसे.
📚(रद्दुल मोहतार, बहारे
शरीयत, हिस्सा-3, सफा- 182, फतव-ऐ-रज़वीययह, जिल्द-3, सफा-403)
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12. अगर मुहल्लेकी मस्जिद मे नमाज़की जमाअतकी नमाज़ न मिले तो किसी दूसरी मस्जिदमे अगर जमाअत मिल सकती है तो वहा जाकर नमाज़ पढ़ना अफज़ल है. और दूसरी मस्जिदमे नमाज़की जमाअत मिलना मुम्किन नहीं तो मुहल्लेकी मस्जिदमे तन्हा
नमाज़ पढ़ना अवला (बेहतर) है. और अगर अज़ान पढ़ने वाले मोअज़्ज़िनने अज़ान पढ़ी और जमाअतके लिए कोईभी न आया तो मोअज़्ज़िन तन्हा पढ़ले, दूसरी मस्जिदमे न जाए.
📚(सगीरी, बहारे शरीयत, हिस्सा-3, सफा-182)
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13. मसअला:-तरावीह और तहिय्यतुल मस्जिद के सिवा तमाम नवाफिल और सुनें (सुन्नत नमाज़) ख़्वाह मोअक्केदाह हो या गैर मोअ-क्केदह हो. घरमे पढ़ना अफज़ल और बाइसे-सवाब-अकमल (सम्पूर्ण) है. सरकारे दोआलम सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लमका इरशाद है के तुमपर लाज़िम है के घरोमे नमाज़ पढ़नाकी मर्दके लिए बेहतर नमाज़ घरमे है सिवा फ़र्ज़ नमाज़ है.
📚(हवाला:-बुखारी शरीफ)
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Tuesday 14 July 2015
Masjid k aadab in Hindi
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